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जीवित का अंतिम संस्कार ?????

LOTUS......
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अटपटा किंतु सच. हम में से अधिकांश अपने परिजनों का अंतिम संस्कार उनके बिना पूरी तरह मृत हुए ही कर देते हैं. जी हाँ! मरने के बाद पूरा शरीर भले ही  मृत हो जाता है पर एक अंग ऐसा भी जो छ घंटे ताज जीवित रहता है . वो हैं हमारी आँखे. अब इन्हें जीते जी आग में झोक देना या दफना देना कहाँ का धर्म है?
क्यों न इन जीवित आँखों का सम्मान किया जाय? आइये! नेत्रदान किया जाय ताकि हमारे जाने के बाद भी हमारी आँखों का नूर किसी ज़रूरतमंद की आँखों में जगमगाए.
अक्सर ज़िन्दगी की उलझनों में हम चाह कर भी समाजसेवा नहीं कर पाते पर नेत्रदान जैसी समाजसेवा के लिए आपको न तो समय निकलना है न ही कोई खर्च. यह प्रक्रिया मृत्यु के बाद ही होती है.

अपने किसी परिजन की मृत्यु पर आप अपनी इच्छा से भी उसकी आँखे दान करा सकते हैं भले ही उस व्यक्ति ने ऐसा कोई संकल्प न किया हो.

आज दो लाख नेत्रहीन (मात्र एक शहर का आकड़ा ) दुनिया देखने के लिए तरस रहे हैं . आगे आइये! और उन नेत्रदान द्वारा उनकी  मदद करिए!
महत्वपूर्ण बात ___1.पूरी आँख अब नहीं निकाली जाती.
बस एक छोटी सी झिल्ली कार्निया ही निकाली जाती है.
2.नेत्रदान के बाद मृतक की आँखों में कोई अंतर नहीं पता चलता.
3.सारी प्रक्रिया मृतक के घर या जहाँ भी शव रखा हो वही संपन्न कराई जाती है यानि शव को हिलाया तक नहीं जाता.
4.नेत्रदान या नेत्र प्रत्यारोपण का खर्च सरकार या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा उठाया जाता है.
5. स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, डायबिटिक या चश्मे वाले व्यक्ति भी कर सकते हैं नेत्रदान.
6.एड्स, हेपटाइटिस बी, सी, या किसी वायरल संक्रमण वाले व्यक्तियों की आँखे नेत्रदान के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं.
नेत्रदान हेतु सम्पर्क सूत्र : 9554717171, 9454212121
“अपने लिए जिए तो क्या जिए
तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए “

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