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अन्ना हजारे, एक निर्भीक ,ईमानदार समाजसेवी जो एक मंदिर में रहता है और बेहद आवश्यक चीजों के साथ जीवन यापन करता है . महात्मा गाँधी भी आधी धोती पहनते थे और सत्य -अहिंसा की रोटी खाते थे .अन्ना के पास आज भारत का न सिर्फ प्रबुद्ध वर्ग बल्कि युवा, जन साधारण सभी एक जुट से साथ हैं. वहीँ गाँधी जी के भी साथ पूरा भारत हुआ करता था.देखा जाय तो ये कुछ बुनियादी बातें हैं जो अन्ना को महात्मा गाँधी के समकक्छ खड़ा करती हैं ,पर क्या वाकई अन्ना को उतना श्रेय दिया जाना चाहिए जितना कि गाँधी को दिया गया ?व्यक्तिगत तौर पे मैं स्वयं अन्ना जी के साथ हूँ,उनके सिद्धांतों और लक्छ्यों के साथ हूँ पर मैं उन्हें गाँधी के बराबर नहीं मानती ! कारण कि अन्ना कि लड़ाई एक छणिक लक्छ्य (भ्रस्टाचार उन्मूलन) से जुडी है ,एक लोकपाल बिल को पारित करवाने भर से जुडी है पर क्या यदि लोकपाल बिल पारित हो जाय तो भ्रस्टाचार समाप्त हो सकेगा? एक क़ानूनी व्यवस्था लोगों के मन में उस कानून के प्रति भय तो भर सकती है पर उनकी अंतरात्मा को बदल नहीं सकती .कहने का तात्पर्य कि अन्ना के पास भ्रस्टाचार को जड़ से समाप्त कर पाने कि कोई व्यापक योजना नहीं . आज यदि अन्ना को कुछ हो जाये तो उनके बाद कौन है जो उनकी इस परंपरा को आगे ले जायेगा? जो व्यक्ति उनके साथ जुड़े हैं उनकी निष्ठां पर मीडिया और सरकार समय समय पर कीचड़ उछलती रही है यदि उन्हें पाक साफ मन भी लें तो उनके पास आन्दोलनों को संचालित करने का लम्बा अनुभव भी नहीं है .सबसे बड़ी बात कि अन्ना या उनका समूह का भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क पर उस हद तक नियंत्रण नहीं है जैसा कि गाँधी जी का था .
अब गाँधी कि कि कार्यशैली पर दृष्टि डाली जाय तो सर्वविदित है कि बापू या उनके अनुयायियों के प्रति तो जनता अभिमंत्रित सी रहा करती थी . गाँधी जी सिर्फ स्वराज्य के लिए नहीं लड़े बल्कि नमक जैसी बुनियादी वस्तुओं के लिए भी उन्होंने वही दृष्टिकोण रखा . गाँधी के साथ उसी निश्छलता के दर्जनों व्यक्ति थे ,भले ही उनमे सैधांतिक तौर पर लाख मतभेद हों पर एक उद्देश्य के प्रति वे पूर्णतः कटिबद्ध थे,भारत छोडो आन्दोलन इस बात का प्रमाण है कि जब सभी शीर्ष नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए तो भी आन्दोलन कि प्रबलता कम न हुई बल्कि यह एक निर्णायक आन्दोलन सिद्ध हुआ .
अन्ना का उद्देश्य पूर्णतः पवित्र है इसमें कोई संदेह नहीं ,ईश्वर करे कि उनका अभियान सफल हो .पर अभी गाँधी के स्तर तक पहुँचने में उन्हें पता नहीं कितना समय लगेगा? अतः हम अन्ना को गाँधी विचारधारा का अनुयायी तो मान सकते है पर गाँधी के बराबर कदापि नहीं कर सकते .
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