आये दिन घटने वाली अपराधिक घटनाओ से मन इतना व्यथित हो गया है कि बिना किसी भूमिका के इस बार मैं सीधी अपने मुद्दे पे आना चाहूंगी . आखिर क्य्नु हर जगह कोई लड़की किसी की गलत भावनाओ का शिकार होती है? ………या कहें की होती चली जा रही है .कभी कोई सीमा ,कोई कविता,कोई …………..! नाम और स्थान अलग अलग हो सकते हैं पर दर्द तो हर उस लड़की को उतना ही होता है जो ज़ुल्म का शिकार होती है .मामला चाहे छेड़खानी का हो ,यौन शोषण का हो,या बलात्कार का हर स्थान पे पीड़ित होने के बाद भी उपेक्छा,बदनामी,या सहानुभूति भी लडकियों के ही खाते में चली आती है. क्यों?कही किसी महिला को न्याय मिल पता है किसी को नहीं पर बदनामी तो सबको मिल जाती है .समाज को क्या लगता है की महिलाये स्वयं अपराधी को बुलाती है कि आओ अपराध करो! जी नहीं ! यदि ऐसा होता तो कोई लड़की या महिला कभी अपराध के बाद दुखी न दिखाई पड़ती .कोई गीता,सुमन या शीतल आत्महत्या न करतीं! कहने को तो हम ४७ में ही स्वतंत्र हो गए थे पर हमें स्वतंत्रता आधी ही मिल सकी! क्योंकि हमारी आधी आबादी अर्थात महिलाएं अब तक हर पल डरी डरी सी हैं कि पता नहीं कब उनके साथ अगले ही पल क्या हो जाय? आखिर इन अपराधो को रोका कैसे जाय? अब पुलिस तो एक एक लड़की कि हिफाजत कर नहीं सकती (वैसे भी वो क्या कम भ्रष्ट है?) तो फिर क्या किया जाय?हमने लडकियों को तो बचपन से ही सख्त अनुशासन के पहरे में रखा फिर भी हमारी बहने और बेटियां बच न सकीं! सो अब हमें अंपने बेटो को समझाना होगा! अब दायित्व एक बेटी के माँ बाप से ज्यादा एक बेटे के माता पिता का बनता है कि वो अपने बेटो को उचित संस्कार और शिक्छा दें. हमें अपने बेटों को ,भाइयों को समझाना होगा कि यह अनैतिक है .इसमें तुम्हारी और तुम्हारे घरवालो की बदनामी होगी. साथ ही लडकियों और उनके माता पिता को समझने की ज़रूरत है की उन्होंने कोई गलत कम नहीं किया कि उन्हें किसी से मुंह छिपाना पड़े! यह बात मैं हर उस इंसान से कहना चाहूंगी जो स्वयं को शिक्छ्त और समझदार समझते है कि लडकियों के साथ होने वाले अपराध-विशेष को बिलकुल उसी प्रकार सामान्य भाव से लीजिये जैसे किसी के सामान्य एक्सीडेंट को लिया जाता है और सहानुभूति भी उसी ढंग से दें (यह कतई न कहें कि हाय अब क्या होगा? बेचारी का तो जीवन बर्बाद हो गया ! ) जब किसी के घर चोरी हो जाये या फिर कोई कीमती वस्तु गुम हो जाय तो क्या सबकुछ ख़तम हो जाता है ? यदि किसी लड़के को गुंडे बुरी तरह पीट के छोड़ दे तो उसकी तो बदनामी नहीं होती ! फिर लड़की के साथ जब कुछ घटता है तो लड़की का जीवन जबरन समाप्त क्यों मान लिया जाता है? उसकी बदनामी क्यों होती है ? लड़कियों को सामान्य भाव से जीने क्यों नहीं दिया जाता? आज से और अभी से अब यह दो अलग अलग मापदंड समाप्त करिए ! या तो लडको और उनके परिवार वालों को भी ज़रा सा कुछ होने पे उन्हें मुंह छिपाने पे विवश कर दीजिये या फिर…………..लड़कियों को भी सम्मान से जीने दीजिये!
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