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क्यों नारी ! कब तक रहेगी तेरी वही कहानी?
कब तक बहेगा आँखों से तेरे झर झर पानी!!
देवी कहकर एक निर्जीव मूर्ति सा कोने में तुझे
बस सुशोभित ही देखना चाहती है ये दुनिया
फिर भी तू इस भुलावे में बैठी की तुझे पुजती है दुनिया !
माँ काली उन्हें तो बस मंदिरों में ही अच्छी लगती हैं
असल ज़िन्दगी में तो द्रौपदियां अपने पतियों की नाकामी से बिकती हैं
सीता सारी कभी अग्नि परिक्च्छा तो कभी वनगमन से डरती हैं
खुद तू चल सके जिस पर ऐसी राह वो न बनाने देंगे
और सहारे की बैसाखी…..आरेक्च्हन के रूप में देंगे
क्य्नु की आदमी चाहता ही नहीं कि तुम और वो बराबरी में हों
वरना आदमी आदमी को ही समझाता कि औरत का सम्मान करो !
लड़कियों से ही कहा जाता है कि आदमी से बच कर चलो !!
मानो वे हमारे शिकारी और हम उनके शिकार हैं
हम पे जुल्म करना ही उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो
ओ नासमझ नारी! मत कर भरोसा इन झूठे वादों पे
अब तू कड़ी हो जा अपने मजबूत इरादों पे
बन कर शक्ति स्वरूपा तुझको है गरिमा अपनी बढ़ानी
ताकि कह सके दुनिया सबला जीवन वाह!
तेरी भी खूब कहानी!!!
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